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जीवन / रसूल हम्ज़ातव / सुरेश सलिल
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02:10, 11 नवम्बर 2022
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<poem>
सुबह और शाम
दोपहर और रात
अन्धेरे का मछुआरा
उजाले का मछुआरा,
विश्व महासागर है एक
और
रह-रहकर
मन में आती बात —
मछली की भाँति हम
तैर रहे उसमें दिशाहारा ।
विश्व महासागर है एक
और
जाल फैलाते हुए मछुआरे
जोह रहे बाट
चारा छिटकाते हुए —
कि कैसे
कितनी जल्दी
काल ले जाएगा हमें फँसाकर
रात के जाल पर
दिवस की कटिया पर !
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
अनिल जनविजय
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