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स्त्रियों ने बुद्ध होना नही चुनामहापरिनिर्वाण की अपेक्षित भी नही हुईतपस्या कीप्रेमी की मुस्कान में ब्रह्मांड देखाघर सम्भालने को निर्वाण प्राप्ति का प्रारब्ध मानाक्रम में स्वअस्तित्वबोध कियाऔर यशोधरा हो गईं।उन्होंने शिव होना नही चुनासती होकर अपने प्रिय के अपमान मेंस्वयं को अग्निकुंड में समाहित किया।कृष्ण होना नही चुनाराधा बन निश्च्छल प्रेम की प्रतीक बनी।महावीर जैसा तप नही कियाजब जब वो ज़ोर से हँसीउन्हें 'कैवल्य' प्राप्त हुआ ।
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