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पल भर को लगा
जैसे कोई चीन्हार बच्ची को जादुई दुनिया दिखा रहा हो
पितृ - स्नेह को अहका मेरा मन सिर न उठाने की मंशा को त्यागकर उनका मन रखने को जहाज़ देखने लगा
देह और मन दोनों इतने विक्लांत थे कि बार-बार देह का दाहिना हिस्सा किसी छुअन से खीजता
पर भ्रम समझ फिर निढाल हो जाता
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