Changes
927 bytes added,
13:56, 29 नवम्बर 2022
{{KKCatKavita}}
<poem>
जिनकी नाजुकी में
हैं बंद सांसें
उनकी मुस्कान
मरा आईना है।
शामिल कहां रहता हूं
अपनी ही हंसी में अब
हंसता हूं
कि हंसते चले जाने का
रोजगार हो जैसे।
तुम्हारे दुख
मुझे छूना चाहते हैं
और मैं
भागा फिर रहा
कि कहीं वे
मेरे भीतर सोए
दुखों को
जगा न दें।
तेरे बिना
तेरा चेहरा
लगा रखा है।
जी तो उससे
रूठने को करता है
डर है कि
मनाना न
भूल जाउं मैं।
हारता
आया हूं
हर बार
पहले से
बड़ी लड़ाई
हारता हूं।
</poem>