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{{KKRachna
|रचनाकार=जान दुबरोफ़ (जेहन्ने डरब्यू)
|अनुवादक= रति सक्सेना
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<poem>
'''लेहा रचेल के लिए'''

शादी से पहले वधु का घूँघट उठाया जाता है
यह बताने के लिए कि यही वह पत्नी है
जिसका उसके पति ने सौदा किया था

फिर पादरी एक खेल खेलता है
मानों कि सारी लड़कियाँ अदल-बदल गई हों
एक दागदार फल का सौदा
एक घायल काले के साथ

सच यह है कि – चेहरा छिपा ही रहता है
चाहे घूँघट कितना ही पारदर्शी क्यों ना हो

सिल्क फुसफुसाहट सी मुलायम हो
शादी के बिस्तरे पर, सफ़ेद किनारी
धागों और अकेलेपन से बुनी हो
हम हमेशा पर्दे में होते है,

यहाँ तक कि
चादर के नीचे भी, हमारी खाल हमारे भीतर के
हज़ारो कोषों को ढँकने वाली एक परत ही तो है

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रति सक्सेना'''
</poem>
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