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एमीली वेहाहेन

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|मृत्यु=27 नवम्बर 1916
|कृतियाँ=फ़्लामान्दकी (1883) यानी बेल्जियम की फ़्लेमिश इलाके की स्त्रियाँ , संन्यासी (1886), सन्ध्याएँ (1887), दुर्घटनाएँ (1988), काली मशालें (1890), बेसुध मैदान (1893), अष्टबाहु (ओक्टोपस) नगर (1895), भोर का समय (1896), दोपहर का समय (1905), शाम का समय (1911) और, युद्ध के लाल पंख
|विविध=ब्रिटेन के अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा सम्मानित एमीली वेहाहेन की मृत्यु फ़्रांस के नार्मन इलाके में रुआन स्टेशन पर एक छूट रही रेलगाड़ी के नीचे आने से हुई। फ़्रांस फ़्रांसीसी कविता के प्रमुख प्रतीकवादी कवियों में से एककवि, जिन्होंने साहित्य में प्रतीकवाद की स्थापना की और जिनका मुख्य प्रतीक रही -- धरती, उपजाऊ धरती, जो जीवों को जीवनदान देती है। एमीली पितृसत्तात्मक परम्पराओं और पितृसत्तात्मन समाज के टूटने पर बेहद आहत हुए थे और उन्होंने गाँवों को ’पैशाचिक गाँव कहना शुरू कर दिया था, जहाँ ’ग्रामीण मृगतृष्णा’ के अलावा और कुछ बाक़ी नहीं बचा है। उनका कहना था कि सारे रास्ते शहरों की ओर ही ले जाते हैं, जहाँ का जीवन बेहद कठोर और यातनादायक है तथा मनुष्य की आत्मा की हत्या कर देता है। राजनीतिक रूप से वे सोशलिस्टों के क़रीब थे और समाजवादी नज़रिया रखते थे।
|जीवनी=[[एमीली वेहाहेन / परिचय]]
|अंग्रेज़ीनाम=Emile Verhaeren
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