Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विस्साव शिम्बोर्स्का |अनुवादक=श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विस्साव शिम्बोर्स्का
|अनुवादक=शुचि मिश्रा
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
किसी प्रयोगशाला में घट रहा हो
ग़ालिबन यह सब कुछ हयात में
एक लैम्प की रोशनी तले दिन में
अरबों लैम्प की रोशनी तले रात में
सम्भवत: हम ही वे नस्लें जो
प्रयोगों के लिए चुनी गईं
एक बर्तन से दूसरे में उड़ेली गई
कि परखनलियों में हिलती
सिर्फ़ आँखों से
जाँच-परख नहीं हो रही हमारी
अन्ततः चिमटियों से पृथक-पृथक
उठाया जाता है हमें

ग़ालिबन या यक़ीनन कुछ यूँ
कि कोई हस्तक्षेप नहीं
हो रहे हैं सारे बदलाव
योजनाबद्ध तरीक़े से
पहले से अनुमानित आड़ी-तिरछी लकीरें
ग्राफ की सुई उकेरती है

सम्भवतः हम ऐसे विषय हैं जो
ख़ास दिलचस्पी के नहीं
सामान्यत: हम 'प्लग इन' नहीं
होते ज्यों मनीटर की निगरानी
हम पसन्द हैं केवल युद्धों-महायुद्धों बाबत
दुनिया जहान की
कतिपय पृथ्वी के
हमारे टुकड़ों के उत्थान की
जैसी बिन्दु 'अ' से बिन्दु 'ब' तक के
लोगों के प्रवास की

इसके विपरीत
यह भी सम्भव है कि उन्हें रुचि हो
मामूली बातों में कि
देखो, पर्दे पर उस नन्हीं बच्ची को
वह अपनी पोशाक की
बाँहों में बटन टाँकती हो
यकायक भागते हैं कर्मचारी
राडार चीख़ने से —
वाह-वाह कितना प्यारा है
उससे भी प्यारा- धड़कता नन्हा-सा हृदय
सुई में धागा पिरोना —
कितना लुभावना और पवित्र है यह दृश्य

कोई पुकारता है मंत्रमुग्ध-सा कि अरे
बुलाओ प्रधान को
उन्हें स्वयं देखना चाहिए यह दृश्य !

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,606
edits