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{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=शुचि मिश्रा
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<poem>
भविष्य अन्तरिक्ष है वैसे
पृथ्वी का रंग है जैसे
जैसे गगन का रंग
नीर और पवन का रंग
स्याह है यह अन्तरिक्ष :
जैसे सपनों के लिए जगह
जैसे उज्जवल अन्तरिक्ष :
बर्फ़ीले संगीत हेतु स्थान वह

निराश प्रेम में चुम्बन के लिए
वह जगह नहीं, जो पीछे छूटी
जंगलों, सड़कों और निवासों में
कोई-कोई जगह सभी के लिए
भूमि के भीतर और सागर के
पानी के नीचे एक अन्तरिक्ष है
किन्तु कितना ख़ुशीभरा है अन्त में
यह उठते हुए ख़ाली ग्रह को पाना

विशाल नक्षत्र, वोद्का की तरह साफ़
इतने पार देखे जाने वाले लोगविहीन
जहाँ दूरभाष के साथ पहुँचना पहले
कि इतने सारे व्यक्ति फिर पहुँचकर
बहस करें वे अपनी कमज़ोरियों पर

ख़ास है कि हमें अपना इल्म रहे बमुश्किल
हम असमतल पर्वत-शृंखला से चीख़ें
और उस स्त्री के पैर देखें
जो अभी-अभी पहुँची है चोटी पर

आओ, पार करें यह घुटनभरी वैतरणी
जहाँ हम सुबह से रात तक सरकती
दूसरी मछलियों के संग तैरते हैं
और अन्ततः हमें भान होता है
अन्तरिक्ष में ...उस अनन्त छोर
हम उड़ें एक अछूते एकान्त की ओर !

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा'''
</poem>
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