1,104 bytes added,
10:28, 9 जनवरी 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
बादलों में जल नहीं है
जल रहा आकाश
और नीचे उतरती
मरुथल सरीखी प्यास !
घुमड़ते हैं
गरजते भी हैं
क्रुद्ध बिजली भी गिरा जाते
पर कभी क्यों गन्ध सोंधी
बन नहीं पाते ?
मौसमी ही क्यों
युगों का संग यह परिहास !
जानती
पहचानती भी है
स्वाति का सौहार्द यह धरती
पर फ़सल से मोतियों की
भूख कब मरती ?
भूख ही क्यों
काव्य भू का
भूख ही इतिहास !
14-5-1976
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader