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17:53, 22 फ़रवरी 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार कृष्ण
|अनुवादक=
|संग्रह=धरती पर अमर बेल / कुमार कृष्ण
}}
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<poem>
रंगों खिलौनों से खेलती हुई बच्ची
दुनिया के बारे में नहीं जानती
वह नहीं जानती-
खिलौनों की दुनिया में नहीं आते कभी सपने
नहीं जानती-
कैसे काला रंग कर देता है समाप्त
पलक झपकते ही खूबसूरत रंगों का वजूद
जब-जब आता है उसका जन्म-दिन
तब-तब बड़े हो जाते हैं पिता के डर
मैं उसे कैसे समझाऊं-
यह लकड़ी के नहीं
लोहे के खिलौनों से खेलने का समय है
यह नाचने का नहीं
घुड़सवारी करते हुए
घोड़े की लगाम खींचने का समय है
तुम पिता की तरह
अभी से दौड़ना शुरू कर दो।
</poem>