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कलम का फैसला / कुमार कृष्ण

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|रचनाकार=कुमार कृष्ण
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|संग्रह=धरती पर अमर बेल / कुमार कृष्ण
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<poem>
मुश्किल बहुत मुश्किल है-
कविता के कमरे में डर को छुपाना
जितनी बार पहुँचता है डर कलम की नोक तक
उतनी ही बार सूख जाती है कलम की स्याही
कलम सोचती है बार-बार-
सोचती है सदियों पुराने
डर और कलम के रिश्ते के बारे में
वह कैसे मान सकती है हार
उसे सिलने होंगे डर के लिए साहस के कपड़े
थपथपानी होगी शब्दों की पीठ
गाड़ने होंगे जगह-जगह कविता के तम्बू
जितनी बार डर आए वहाँ
उतनी ही बार हिम्मत का कोट पहन कर
निकल जाए अगली यात्रा के लिए।
</poem>