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11:56, 28 फ़रवरी 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मोहम्मद मूसा खान अशान्त
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<poem>
इश्क़ हमने न किया बल्कि इबादत की है
कैसे बतलाऊँ तुम्हें कितनी मुहब्बत की है
सोते जगते भी तिरा नाम रहा है लब पर
हिफ़्ज़ यूँ नाम तिरा करके तिलावत की है
लोग कहते हैं की सूली पे चढ़ा दो इसको
प्यार क्या तुझसे किया लगता बगावत की है
हर गली में तिरी तसवीर लिए फिरता हूँ
सुबह उर शाम यही हमने अयादत की है
तुम जो मिल जाओ बदल जाए कहानी मूसा
हमने बस अपने ख़ुदा से यही हसरत की है
</poem>