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|रचनाकार=सुकीर्थ रानी
|अनुवादक=सुधा तिवारी
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<poem>
तुम और मैं चलते हैं साथ - साथ
गोया अगवानी करते हों
दूल्हे की फूलों भरी गाड़ी का
किसी दक्ष गाइड की तरह मैं
इशारा करती हूँ

उस ज्वालामुखी के राख भरे मुँह की ओर
इनसानी जाँघों की जैसी
पहाड़ी दरारें
और गहरी घाटियों की ओर ।
जंगली नदी पिघलाए देती है हमारे कपड़े
और कसकर भींच लेती है अपनी बाहों में,
दरख़्तों से बरस रही है
फूलों के भीतर लिपटी भ्रूण-गन्ध
हम संभोगरत हैं पानी के भीतर
जहाँ झरती हुई चमेलियों की चादर है
और झाग बनकर बह जाता है
देह का रस
बँधे रहने को थोड़ी और देर
मेरी देह के आलिंगन में ।

गुजारिश में जुड़े हैं तेरे हाथ,
मैं किनारे पे चढ़ आती हूँ नंगी ही
परिन्दे कभी नहीं भूलते
अपने गाने का वक़्त ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी'''
</poem>
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