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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
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<poem>
यकीं रक़ीब की बातों पे जो किया होगा ।
मुझे पता है तेरा फिर जो फ़ैसला होगा ।।

तेरी वफाओं पे शक का कोई सवाल नहीं ,
लिखा नसीब में मेरे यही सिला होगा ।

तलाश-ए-यार में दर-दर भटक रहा था मैं ,
मिला है मुर्शिद-ए-कामिल तो कुछ भला होगा ।

सुकूं से जीने को मज़हब बनाया था हमने ,
ये क्या पता था कि मज़हब ही मसअला होगा ।

दिया है तुझको खुदा ने तो बाँट कर खा तू ,
ज़िया जो औरों को बख़्शेगा तो दिया होगा ।

ज़माना करता रहे लाख ज़हर-अफ़्शानी,
जो तूने ऐसा किया तो बहुत गिला होगा ।

पहुँच गया हूँ मैं ऐसे मुकाम पर लोगो ,
हर एक ज़ख़्म 'असर' जिस जगह दवा होगा ।
</poem>