1,406 bytes added,
18:58, 31 मार्च 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=नवगीत/ प्रताप नारायण सिंह
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
टूटा कैसा आज कहर है!
सूनी सड़कें, सूनी गलियाँ
सूना सारा गाँव, नगर है
फन फैलाए, आशंका का
हर चौराहे पर विषधर है
द्वार-द्वार मातम सा पसरा
सबके मन में बैठा डर है
हँसी-ठहाकों के सम्पुट पर
लगे आज चिंता के ताले
सुख की कोठर स्याह पड़ी अब
पीड़ा बुनती पग-पग जाले
उल्लासों के पुष्प अचेतन
सूखे तरुवर, कठिन डगर है
रहा सदा पर अविजित मानव,
अविरल रही सृष्टि की धारा
झंझावात, भँवर मुट्ठी में-
-भर, पाया गंतव्य, किनारा
छिन्न-भिन्न यह तम भी होगा
जीवन-ज्योति अतीव प्रखर है
</poem>