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<poem>
न तो हाल-ए -दिल मिरा पूछिए न ही सर के सूरत-ए-हाल को
ये वजूद है, ये ज़मीन है, यहीं बाँधना है ख़याल को

कोई आसमाँ का भी क्या करे, ये धुआँ धुआँ हैं मु'आशरे
कोई क्या सुनेगा नुजूम से, कोई क्या कहेगा हिलाल को

किसी और की घबराहटें किसी और की परछाइयाँ
मिरे घर में आकर देखिए मिरी आगही के कमाल को

मिरे आइने में ये कौन है मुझे किस नज़र का है सामना
किसी दीदावर की तलाश है मिरे आइने के सवाल को

मैं जो हर बरस हुआ सुस्त-पा तो वो हर बरस हुआ तेज़तर
ये जो हम-क़दम मिरा वक़्त है पहुँचे न आख़िरी साल को

जो फ़रेब है वो है सामने जो हक़ीक़तें थीं गुज़र गईं
मिरे फ़लसफ़ी ने दिखा दिया मुझे ताक़तों की मजाल को

जो गुज़िश्तगाँ की रफ़ाक़तों में सियासतें हैं फ़साद की
कभी खोल मुस्तक़बिल का दर ज़रा सुन भी ले अत्फ़ाल को

शब्दार्थ :

वजूद – अस्तित्व (existence)
मु'आशरा – समाज (society)
नुजूम – सितारे (stars)
हिलाल – नया चाँद (the new moon)
आगही – चेतना (consciousness)
दीदावर – पारखी (connoisseur)
सुस्त-पा – धीमी गति वाला (lazy footed)
हम-क़दम – साथ चलने वाला (fellow traveller)
फ़लसफ़ी – दार्शनिक (philosopher)
मजाल – सामर्थ्य (capability)
गुज़िश्तगाँ – पूर्वज (ancestors)
रफ़ाक़त – मेल-मिलाप (companionship)
मुस्तक़बिल – भविष्य (future)
अत्फ़ाल – बच्चे (children)
</poem>
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