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14:57, 27 अप्रैल 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रुचि बहुगुणा उनियाल
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<poem>
नहीं चूमा
उसने प्रेमिका के होंठों के नीचे का तिल
जो गवाह था प्रेमिका के
लजाते सौंदर्य का
जिसे पता थी सारी भंगिमाएँ
प्रेमिका की मनःस्थिति के साथ
पल-पल बदलते होंठों की
न ही उसने पीठ पर उभरे
तिल को चूमना चाहा
जो प्रेम का गूढ़ रहस्य लिखता था पीठ पर प्रेमिका की
ऐसे न जाने कितने ही तिलों को अनदेखा किया उसने
केवल एक उस तिल को छोड़कर
जो प्रेमिका के बाएँ पैर में
अँगूठे के बराबर वाली ऊँगली में इठला रहा था
उसी एक तिल ने सहेजी थी सब यात्राएँ
जो तय की थी प्रेमी तक पहुँचने के लिए
प्रेमिका के सुकोमल तलुवों ने...
जब-जब भी मिले दोनों
प्रेमी ने आतुरता से झुककर चूमा
बाएँ पैर में उभरे गाढ़े तिल को!</poem>