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राई के खेतों से गुज़र रहे घुड़सवार, ख़ाली हैं चक्कियों के खत्ते ।
आधी रात में जहाँ चरवाहे गाएँ, हिरण भागे-दौड़ें और’ पैर झटकाएँपेड़ों के झुरमुट में अलाव के घेरे में, सदियों पुराने दुख-सुख बतलाएँ ।अन्धेरे की काली दीवार पर जहाँ, नाचती दिख रही हैं नर्तक परछाइयाँकहकहे हैं, पागलपन है, लाल पताकाओं के नीचे बज रही हैं तुरहियाँ ।
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