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अन्धेरे की काली दीवार पर जहाँ, नाचती दिख रही हैं नर्तक परछाइयाँ
कहकहे हैं, पागलपन है, सुर्ख़ पताकाओं के नीचे बज रही हैं तुरहियाँ ।
 
'''मूल जर्मन से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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