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|रचनाकार=नवारुण भट्टाचार्य
|अनुवादक=तनुज
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<poem>
आकाश में उड़ता देखा ढेर सारा पैसा
और तुम मान बैठे इन्हें तितलियाँ
और इसी वजह लिख मारी
एक हलकी सी रंगीन कविता

आकाश में उड़ रहा था युद्धक विमान
तुम मान बैठे उन्हें झुण्ड पंछियों के
और इसी सिलसिले में लिख मारी
अनगिनत पंखों वाली कविता

इसी तरह
तुम बुलेट को मान बैठे लिपिस्टिक
बम-धमाकों को मान बैठे बादल

तभी तो...
बच्चों के फटे हुए हाथ
फटेहाल छातियों वाले व्यक्ति
बरबाद अस्पताल
तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखते !

महज बकवादी कहना तुमको
अपने आप में अपूर्ण है
भाषा में,
एक बर्बाद हो चुका कूड़ादान भी चिल्लाकर कहता है
तुमसे कि
तुम्हारी कविताएँ उसके भी किसी काम की नहीं हैं ।

'''मूल बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद : तनुज '''
</poem>
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