1,314 bytes added,
18:40, 17 मई 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमल जीत चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं रात में छत पर सूखे कपड़े लेने जाता हूँ
ढाई साल का मेरा बेटा बाँहें पसारकर कहता है —
मैं भी जाऊँगा ।
मैं टालते हुए कहता हूँ —
ऊपर अँधेरा है बेटा ।
वह कहता है —
पाप्पी जी, मैं धेरे* में आपको बचा लूँगा
मैं सफ़ेद बुड्डी को ठा मार दूँगा ।
मैं हँसकर उसे गले लगा लेता हूँ
मैं पूछता हूँ —
आप मुझे कित्ता प्यार करते हो,
ज़ादा
मैं आपका कौन हूँ ?
आप मेरे टक पाप्पी हो ।
....
आप मुझे टक पाप्पी क्यों कहते हो ?
क्योंकि
टक टक स्वाद लगता है ...
'''शब्दार्थ'''
धेरे — अँधेरे
</poem>