1,532 bytes added,
18:19, 20 मई 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=मोहन थपलियाल
|संग्रह=इकहत्तर कविताएँ और तीस छोटी कहानियाँ / बैर्तोल्त ब्रेष्त / मोहन थपलियाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब हमारे शहर
बरबाद हुए
बूचड़ों की लड़ाई से
नेस्तनाबूद
हमने उन्हें
फिर से बनाना शुरू किया
ठण्ड, भूख और कमज़ोरी में ।
मलबे लदे ठेलों को
ख़ुद ही खींचा हमने,
धूसर अतीत की तरह
नंगे हाथों खोदीं ईंटें हमने
ताकि हमारे बच्चे
दूसरों के हाथों न बिकें
अपने बच्चों के लिए
हमने बनाए तब
स्कूलों में कमरे
और साफ़ किया स्कूलों को
और माँजा,
पुराना कीचड़ भरा
शताब्दियों का ज्ञान
ताकि वह बच्चों के लिए सुखद हो ।
(1947-53)
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल'''
</poem>