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12:14, 7 जून 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लिअनीद गुबानफ़
|अनुवादक=वरयाम सिंह
|संग्रह=
}}
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<poem>
मन बहुत उदास है
और सोने का वक़्त हो गया है
शोर कर रहे हैं चहलक़दमी करते डॉक्टर
आड़े-तिरछे उड़ रही है अबाबील
आड़ी-तिरछी चल रही है पनचक्की ।
भरे झूठ की धुन्ध में
थरथरा रही है छाती ।
ओ मेरी नीली आँखों वाली,
न जगा तू भूरी आँखों वाली को ।
शिथिल पड़ रही है लाल गालों की लज्जा
ज़िन्दगी को चादर की तरह उठाते
मुझे समझ आया
आड़े-तिरछे कितना जला चुका हूँ यह आकाश
तुम्हारे-बिना ।
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
Леонид Губанов
</poem>