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मैंने अपने उजड़े मैं पीती हूंँ हमारे उजड़ चुके घर के नाम यह जाम उठाया,उस बदी के नाम जो कि मैंने इतना अशुभ अमंगलकारी जीवन पाया ।मेरी ज़िन्दगी रहीसाथ-साथ हम जीए हमारे मुश्तरका अकेलेपन का ये भार ढोते,के नाम तुम्हारे लिए और पीती यह जाम, जो तुम पास में होते ।हूँ —उन फ़रेबी होटों के नामझूठ कहा मुझे जिन होठों ने, किया था मुझसे छलजिन्होंने हमसे दग़ा की,आँखों का वह ठण्डापन हीउन ठण्डी मुर्दार आँखों के नाम, बना था तब मक़्तल ।असल बात यह इस हक़ीक़त के नाम कि दुनिया रूखी, बर्बर क्रूर और बेरहम,अश्लील हैउस ख़ुदा और यह कि ईश्वर ने भी हमें नहीं बचाया, बसा जो सबके ज़ेहन ।
1934