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कीड़े / कमला दास / रंजना मिश्रा
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10:34, 22 जून 2023
पर सोचा, मृत देह को क्या फर्क पड़ता है
अगर कीड़े मुँह मारे तो !
वह मासूम,
अपनी लालसा में
कितना किंकर्तव्यविमूढ़
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र'''
</poem>
अनिल जनविजय
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