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|रचनाकार=कमला दास
|अनुवादक=रंजना मिश्रा
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<poem>
मेरे चारों और शब्द, शब्द, शब्द हैं
वे मुझपर पत्तों की तरह उगते हैं
ऐसा लगता है वे कभी मेरे भीतर
धीमे धीमे उगना बन्द नहीं करते

पर मैं खुद से कहती हूँ — शब्द
वे एक मुसीबत हैं, उनसे सावधान रहो,
वे कई चीज़ें हो सकते हैं, जैसेकि खाई
जहाँ तेज़ी से चलते क़दमों को ठहरना चाहिए

देखो, वे समुद्र की पंगु बनाने वाली लहरें हो सकते हैं
गर्म हवाओं का भूचाल या तुम्हारे सबसे अच्छे मित्र का गला
काटने को उद्धत चाक़ू
शब्द रुकावट हैं

पर वे मुझपर इस तरह उगते हैं, जैसे पेड़ों पर पत्ते
लगता है, वे कभी उगना बन्द नहीं करते
गहरे मेरे भीतर, एक चुप्पी से

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र'''
</poem>
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