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10:42, 22 जून 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कमला दास
|अनुवादक=रंजना मिश्रा
|संग्रह=
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<poem>
समन्दर के क़रीब कैडल रोड के पीछे
वे अगरबत्तियों की तरह जलाते हैं
ग़रीब लोगों के शरीर
वे काले, दुर्बल शव
सारे रजनीगन्धा और गेन्दे के सुन्दर फूलों से बँधे हुए
हमने उन्हें एक को लाते हुए देखा, पिछले रविवार
हमारे चाय के समय के घण्टे भर बाद, ग़रीब युवा लड़की के सस्ते इत्र
सा महकता
जबकि कुछ बूढ़ियाँ सपाट और एक सुर में रोतीं पीछे चली आईं
सिर्फ़ ग़रीब और आशाहीन ही जानते हैं — किस तरह रोया जाए
जब उन्होंने शरीर को आग के हवाले किया
जानवरों की तरह गुर्राती आग और ऊँची उठी
तब उन्होंने फूल मालाएँ समन्दर में फेंक दी
समुद्री चिड़ियों की एक कतार
लहरों की सवारी करती रही
मेरे पति ने कहा — मुझे थोड़ी बीयर चाहिए
आज गर्मी है, बहुत अधिक
और मैंने सोचा
मुझे जल्दी से ड्राइव करते हुए शहर चले जाना चाहिए
अपने मित्र के यहाँ क़रीब घण्टा भर सो जाने के लिए
मुझे आराम की सख़्त ज़रूरत है
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र'''
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