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23:19, 2 जुलाई 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मीता दास
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<poem>
हम अपना गणतंत्र मनायें या बचाएं
बेहद दुविधा में हूँ जन नायक !
देश बचायें या देशभक्ति
बेहद दुविधा में हूँ प्रजा नायक !
धर्म बचायें या मठ , पीर-पैगम्बर
बेहद दुविधा में हूँ राष्ट्र नायक !
राष्ट्र भाषा बचायें या राष्ट्र
बेहद दुविधा में हूँ अधिनायक !
मातृभाषा बचायें या आदि भाषा
बेहद दुविधा में हूँ परिधान नायक !
खेत बचायें या जन्मभूमि
बेहद दुविधा में हूँ खलनायक !
</poem>