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इस मृत चौराहे से होकर गुज़रने वाली गलियाँ
ले जाती हैं चुप पड़े मौहल्ले तक
जहाँ खड़ा हुआ है एक झुका हुआ तिरछा गिरजा
जिसका टूटा हुआ बरामदा काला पड़ता जा रहा है
दूसरी ओर खड़े हैं ताड़ के पेड़
और सरू के पेड़ ढके हुए हैं
शफ़्फ़ाक सफ़ेद दीवार को
घिरा हुआ है चौराह इन सबसे
दिखाई दे रहा है तुम्हारा घर
और घर की खिड़की सलाखों के पार
तुम्हारा चेहरा शान्त और उल्लसित
पारदर्शी, धुंधलके में पिघलता हुआ
कुछ-कुछ ढलता हुआ ...
 
तुम्हारे दरवाज़े पर दस्तक नहीं दूँगा,
आज मैं थोड़ा जल्दी में हूँ
आज मैं तुमसे नहीं मिलूँगा
 
अपने श्वेत परिधान में आ रहा है युवा वसन्त
पूरे इलाके पर छाया है चुपचाप
वह बढ़ रहा है तुम्हारे बगीचे की ओर
वहाँ लगे कासनी गुलाबों को दमकाने के लिए ...
और मैं उसका पीछा करने की जल्दी में हूँ ...
 
'''रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
'''लीजिए, अब पढ़िए रूसी अनुवाद में यही कविता'''
Antonio-Machado
На вымершую площадь
 
На вымершую площадь
ведут проулки по глухим кварталам.
Наискосок - церковка
чернеет облупившимся порталом;
с другого края - пальмы
и кипарисы над стеной беленой;
и, замыкая площадь, -
твой дом, а за решеткою оконной -
твое лицо, так счастливо и мирно
сквозящее, за сумерками тая...
Не постучу. Я тороплюсь сегодня,
но не к тебе. Приходит молодая
весна, белея платьем
над площадью, что гаснет, цепенея, -
идет зажечь пурпуровые розы
в твоем саду... Я тороплюсь за нею...
 
'''लीजिए, अब यही कविता मूल स्पानी भाषा में पढ़िए'''
Antonio-Machado
A la desierta plaza
 
A la desierta plaza
conduce un laberinto de callejas.
A un lado, el viejo paredón sombrío
de una ruinosa iglesia;
a otro lado, la tapia blanquecina
de un huerto de cipreses y palmeras,
y, frente a mí, la casa,
y en la casa la reja
ante el cristal que levemente empaña
su figurilla plácida y risueña.
Me apartaré. No quiero
llamar a tu ventana... Primavera
viene ?su veste blanca
flota en el aire de la plaza muerta?;
viene a encender las rosas
rojas de tus rosales... Quiero verla...
</poem>
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