|संग्रह=
}}
{{KKCatKavitaKKCatNavgeet}}
<poem>
जीने की जिद-सी है आई
अम्मा लेश नहीं डरती है।
है तहजीब तहज़ीब बदल की कैसीकहते-कहते फट-सी पड़ती।
घटनाओं की लिए थरथरी
पीछे लौटे-— आगे बढ़ती।
दिनचर्या पर चीलें उड़तीं
झोंक स्वयं को कठिन समय में
लड़ने का वह दम भरती है।है ।
चौलँग तमक अराजकता की
कुछ भी करो, खौफ ख़ौफ़ काहे का।
इस दर्शन ने रह-रह तोड़ा
नर-नारी का अकलुष एका। कामुक, - क्रूर, नजर - नज़र की कुंठाकुण्ठाचीरेगा अब यही त्रियाधनत्रिया-धनहाथ होंस का सिर धरती है।है । आहत हैं, स्वर-मूल्य-भावनातो भी हम में हममें समझ जगाए।
मुर्दा तंत्र, समाज निकम्मा
असुरक्षा पर होंठ चबाए। है महफूज महफूज़ न औरत कोई
शहतूती विधान को लेकर
प्रबल विरोध खड़ा करती हैंहै । अम्मा लेश नहीं डरती हैं।है ।
</poem>