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ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो / जाँ निसार अख़्तर
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14:11, 15 नवम्बर 2008
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ<br>
न मिले
भीक3
भीक
तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
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220.225.22.195