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<poem>
चरागाहों और चट्टानी इलाकों को
पार करता सरपट
बिना सूरमा के
दौड़ रहा घोड़ा
उसकी गरदन और पीठ पर
चमक रहा है सूरज
पक्षियों ने बन्द कर ली आँखें
उसकी बेतहाशा रफ़्तार देख
लोग मंत्रमुग्ध होकर ठिठक गए हैं
 
सब को लग रहा है कि घोड़ा
अभी गिरा ... अभी गिरा ...
पर घोड़ा सरपट चाल से भागा जा रहा है
 
आख़िर घोड़ा
एक खाई में गिर गया
इससे पहले कि स्तब्ध पक्षी चिल्लाएँ
इससे पहले कि उसकी चाल का जादू टूटे
और लोग भागकर उसे बचाएँ
घोड़ा उड़ जाता है
घुल-मिल जाता है अपने ही रंग में
उसकी छाया
घाटियों के ऊपर उड़ते
काले बादल में बदल जाती है
 
1.
(इस कविता का पहला सारांश)
उसकी गरदन और पीठ पर
चमक रहा था सूरज
 
पक्षियों ने घबराकर बन्द कर ली थीं आँखें
उसकी बेतहाशा रफ़्तार देख
लोग बिजली की तरह ठिठक गए थे अपनी-अपनी जगह
 
सब को लग रहा था कि घोड़ा
अभी गिरा ... अभी गिरा ...
और घोड़ा दुलकी चाल से भागा जा रहा था
 
2.
(इस कविता का दूसरा सारांश)
सभी को लग रहा था कि घोड़ा
अभी गिरा ... अभी गिरा ...
पर घोड़ा सरपट भागा जा रहा था
अपने परकाले से बेख़बर !
'''मूल अरबी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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