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दो लड़के / सुमित्रानंदन पंत

5 bytes added, 20:38, 17 सितम्बर 2023
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मेरे आँगन में, (टीले पर है मेरा घर)
दो छोटे-से लड़के आ जाते है अकसर!
नंगे तन, गदबदे, साँबले, सहज छबीले,
मिट्टी के मटमैले पुतले, - पर फुर्तीले।
मानव को चाहिए जहाँ, मनुजोचित साधन!
क्यों न एक हों मानव-मानव सभी परस्पर
मानवता निर्माण करें जग में लोकोत्तर। लोकोत्तर ।
जीवन का प्रासाद उठे भू पर गौरवमय,
मानव का साम्राज्य बने, मानव-हित निश्चय। निश्चय ।
जीवन की क्षण-धूलि रह सके जहाँ सुरक्षित,
रक्त-मांस की इच्छाएँ जन की हों पूरित! -मनुज प्रेम से जहाँ रह सके,-मावन ईश्वर!
और कौन-सा स्वर्ग चाहिए तुझे धरा पर?
</poem>
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