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<poem>
नफरत को छोड़ो करो प्यार मितवा।
प्यार ही तो जीवन का सार मितवा।

कुछ भी नहीं था जब सृष्टि बनी थी
अंधकार बयाबान सून घनी थी
अंकुर से फूटी तब प्रेम ध्वनि थी
प्रेम ध्वनि थी
प्यार मितवा ॐकार मितवा
अनहत से गूंजा संसार मितवा।
प्यार ही तो जीवन का सार मितवा।

अणु परमाणु के भी अंतर में प्यार है
जीव निर्जीव यही सबका आधार है
अनादि अनंत है यह ब्रह्म निराकार है
ब्रह्म निराकार है
प्यार मितवा निरंकार मितवा
प्रेम ही प्रभु है, प्रभु प्यार मितवा।
प्यार ही तो जीवन का सार मितवा।
</poem>