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खुशी का चेहरा / कुमार मुकुल

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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल
}}
{{KKCatKavita}}KKPustak<poem>|चित्र= |नाम=खुशी को देखा है तुमने क्या् कभीका चेहराश्रम की गांठें होती हैं उसके हाथों में|रचनाकार=[[कुमार मुकुल]]उसके चेहरे पर होता हैतनाव|प्रकाशक=न्‍यू वर्ल्‍ड प्रकाशन, सी- 515, बुद्ध नगर, इंद्रपुरी, नई दिल्‍ली -जनित कसाव110012बिवाइयॉं होती हैं खुशी के तलुओं में|वर्ष=2023शुद्ध मृदाजनित|भाषा=हिन्दी|विषय=कविताएँखुशी की |शैली=--हथेलियॉं देखी हैं तुमने|पृष्ठ=128पतली कड़ी लोचदार होती हैं वो|ISBN=978-9393241573जो अपनी गांठें छुपा लेती हैं अक्स रअपनी आत्माह मेंउस पर चोट करोदेखों कैसे तिलमिलाकरउभर आती हैं गांठें चेहरे के तनावजनित कसावों कोछेड़ने से हीफूटती है हँसीध्वतनि की तरह तलुओं में ना हों तोखुशी की स्मृ त्तियों में जरूर होती हैं बिवाइयॉंवहॉं झांकोगे तो फँसी मिटटी पाओगेउसे मत निकालना गर्त्तम सेरक्तम फूट पड़ेगा उनसे बड़े गहरे संबंध होते हैंमिटटी के और रक्तो केसगोत्रिय हैं दोनों अपनी आत्माै कोजानते हो तुम खुशी की आत्माो खुशी के पैरों में निवास करती हैतब ही तो इतनी तेज दौड़ती है खुशीएक चेहरे सेदूसरे तीसरे व तमाम चेहरों पर कभी खुश हुए हो तुमश्रम किया है क्या कभीदौड़े हो घास पर नंगे पॉंवया फिर रेत परतो तुमने जरूर देखा होगाकि कैसेट हमारे पॉंवों में पैसी आत्मारमिटटी सेचुगती है संवेदनाऔर कैसी तेजी से हरी होती हैंमस्तिष्क की जड़ें यहॉं से वहॉं उड़ान भरती कैसी उन्मुनक्तत होती है हँसीऔर निर्द्वांद्व कितनीकि पकड़ में नहीं आती कभीकैमरे में बंद करो तो तस्वींरों से फूट पड़ती हैमन में बंद करो तो आंखों से क्यां करे वहकि समय कम है उसके पासऔरअसंख्य हैं मनुष्यड पीड़ा से बिंधे हुएऔर सब तक जाना है उसे खुशी कीऑंखें होती हैं हिरणी सीविस्फाहरित तुर्श साफ व सजलछोटी सी पीड़ा भीडुला देती है उसेबह आता है जलटप|विविध=-टप-टप}}बड़ा गम भी * [[प्रस्‍तावना / अंचित]]पचा लेती है खुशी* [[भूमिका / सुशील मानव]]कभी वही * [[शूटर - बूचर / कुमार मुकुल]]गॉंठ बन जाती है कैंसर * [[दाएं हाथ का दर्द और रोटी बनाने कीकला / कुमार मुकुल]] पर श्रम * [[अच्छे दिनों की गॉंठ जि‍यादा कड़ी होती है गम की गॉंठ सेउसे गला देती है वहशुरूआती खबरें / कुमार मुकुल]] * [[खुशी जानती है का चेहरा / कुमार मुकुल]] कि जियादा से जियादाक्याि कर सकता है गमउसे माटी कर सकता है मिटटी * [[वॉन गॉग की तोउर्सुला / कुमार मुकुल ]]बनी ही होती है खुशी* [[न्यायदंड / कुमार मुकुल ]] खिलौनों सीउसके टूटने पर बच्चेै रोते हैंकुम्हाूर नहीं रोतावह जानता है श्रम कोपहचानता है खुशी कोगढ लेगा वह और और नयी बारह सेपॉंव होते हैं खुशी * [[पेड़े रामोतार के/ कुमार मुकुल ]]मृगनयनी होती है* [[अनुपमा / कुमार मुकुल]] पर मृगमरीचिका नहीं देखती खुशी* [[बारिश / कुमार मुकुल]] पहलेकड़कती है बिजलीफिर होता है बज्रप्रहार गरजता जैसा आता है दुखवैसा ही चला जाता हैपर चक्रवातों औरदुख की सूचनाओं की तरहसन्नाीटे का व्याामोह नहीं रचती खुशीआना होता है तो आ जाती है चुप* [[प्यार -चापदो कविताएं / कुमार मुकुल]]भंग करती सन्नांटा आती हैतो जाती कहॉं है खुशीरच* [[ऐ-बस जाती है सुगंध सीखिला देती हैपंखुडि़यों कोफिर बंद कहॉं होती हैं पंखुडि़यॉंझर जाऍं चाहे गमों में सब छोड़ देते हैं दामनतो बच्चेेथाम लेते हैं खुशी कोऔर भरते हैं कुलॉंच तब बड़े नाराज होते हैंउन्हें मारते हैं चॉंटेऔर खुद रोते हैं कुत्ते की तरहहमेशाहमारे आगेअरी-आगे ओ एंजलीना / कुमार मुकुल]]भागती है खुशी* [[जो हलाल नहीं होता / कुमार मुकुल]]बच्चोंह सी आगे आगेसाफ करती चलती है रास्ताआ वह देखती है पहाड़और चढ़ जाती है दौड़ करवहीं से बुलाती है नदी को देखते ही गुम हो जाती है * [[तितलियां / कुमार मुकुल]]भँवरों * [[दिल्ली मेंसुबह / कुमार मुकुल]] जंगल को देखते समा जाती है दूर तकफिर कहीं से करती है कू-कू-कूहम भागते हैं उसे पाने कोभागते चले जाते हैंहॉंपते ढहते ढिलमिलातेउसी की ओर जंगल काटते हैंऔर बनाते हैं पगडंडियॉंभँवरों से लड़कर बनाते हैं पुलपत्थेरों को छॉंट चढते हैं पहाड़ शायद इसी तरह बने हैंतमाम रास्तेह सभ्य ता के खुशी को ढूंढताकोलंबसअमरीका ढूंढ लेता है एवरेस्टढ तकहमें खुशी ले जाती है चॉंद परजाती है खुशीऔर कहती है मंगल पर चलो कभीपीछे लौटकर नहीं देखती खुशीस्मृ तिविहीन अतीत * [[जिंदगी का रास्ताहतर्जुमा / कुमार मुकुल]]नहीं होता * [[घर तो यह मेरा है उसकाडायनासोर मिलते हैं जहॉंजो अपना भविष्य खुद खा जाते हैं।/ कुमार मुकुल]] <* [[भूमिका /poem>कुमार मुकुल]]
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