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02:39, 28 अक्टूबर 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विनीत मोहन औदिच्य
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<poem>
किन अधरों का मेरे अधरों ने होगा चुंबन लिया?
मुझे पूर्णतः हो चुका है विस्मृत यह
कौन सी भुजाओं के नीचे रहा मेरा सिर सुबह
बारिश है प्रेतों भरी, आहें भर कर खटखटाया
शीशे पर, और प्रति उत्तर सुनने का प्रयास किया
और मेरे हृदय में घुमड़ती है पीड़ा जो न पाती सह
उन स्मरण न रखे गए प्रेमियों की जो न सके कह
उन्होंने दोबारा अर्ध रात्रि में कभी नहीं चिल्लाया ।
इस प्रकार शीत ऋतु में एकाकी वृक्ष रहता खड़ा
जो नहीं जानता एक एक कर कौन पक्षी उड़ गए
इसकी शाखाएँ हैं पहले से कहीं शांत, यह जानता ।
मैं नहीं जानूँ कि कौन प्रेमी आए यहाँ, कौन गए चले
केवल इतना है ज्ञात कि मुझमें ग्रीष्म ने संगीत छेड़ा
कुछ देर तक, अब वह मेरे अंदर और नहीं गाता।
</poem>