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02:40, 28 अक्टूबर 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विनीत मोहन औदिच्य
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मेरी इच्छाओं में से एक है कि वे तम आच्छादित वृक्ष घन,
जो हैं इतने पुरातन व सशक्त कि दृष्टिगोचर न होती पवन
काश! यह नहीं होता कदाचित् नैराश्य मात्र का आवरण
किंतु जो खिंचते हुए करता स्पर्श, भविष्य का अंतिम चरण ।
मुझे नहीं किया जाना चाहिए अवरुद्ध, कभी किसी दिन
उनकी व्यापकता में हो जाना चाहिए मुझे लुप्त लेकिन
कभी खुला मैदान पाने के भय से होकर सर्वथा मुक्त वहाँ
या कोई राजमार्ग, धीमे पहिये उगलते हैं रेत कण जहाँ ।
नहीं कोई कारण देख पाता जो मैं पीठ दिखाऊँ कभी
और उन्हें नहीं चाहिए, मेरे मार्ग पर आगे बढ़ना अभी
मुझ पर बढ़त लेने हेतु, मेरी अनुपस्थिति चुभती जिनको
और जो चाहेंगे जानना कि क्या प्रिय मानता हूँ मैं उनको?
नहीं पाएँगे वो मुझमें परिवर्तन, जो थे पूर्व से ही सुपरिचित
सत्य होगा मेरा विचार, जो मुझे आश्वस्त करेगा अपरिमित ।।
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