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वक्त का आखेटक
घूम रहा है
शर संधान किए
लगाए है टकटकी
कि हम
करें तनिक -सा प्रमाद
और, वह
दबोच ले हमें
तहस -नहस कर दे
हमारे मिथ्याभिमान को
पर
आएगा सतत नैराश्य ही
उसके हिस्से में
क्यों किक्योंकि
हमने पहचान ली है
उसकी पगध्वनिपग-ध्वनि
दूर हो गया है
हमसे
हमारा तंद्रिल व्यामोह
हम ने हमने पढ़ लिए हैं
समय के पंखों पर उभरे
पुलकित अक्षर
जिसमें लिखा है कि-
आओ!
हम सब मिल कर
खोलें !
रात की मुठ्ठी को
जिसमें कैद है
समूचा सूरज !!
समूचा सूरज !!-डॅा. जगदीश व्योम
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