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16:16, 8 दिसम्बर 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विहाग वैभव
|अनुवादक=
|संग्रह=मोर्चे पर विदागीत (संग्रह) / विहाग वैभव
}}
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<poem>
मेरे सपने में एक नाव थी
जिस पर सवार होकर
मैं तुम्हें भगा ले जाता था
पर हर सपने की एक ही मुश्किल थी
किनारे लगने के पहले
नींद टूट जाती थी
नाव डूब जाती थी ।
</poem>
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