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|रचनाकार=लालसिंह दिल
|अनुवादक=अमरीश हरदेनिया
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<poem>
ग़ैर की ज़मीन पीछे छोड़
गालियों और झिड़कियों की बेइज़्ज़ती से लदा-फदा
लम्बा कारवाँ चल पड़ा है
शाम की लम्बी होती परछाइयों की तरह

बच्चे गधों की पीठ पर सवार हैं
पिता अपनी गोद में उठाए हुए हैं कुत्ते
माएँ ढो रही हैं देगचियाँ
अपनी पीठ पर
जिनमें सो रहे हैं उनके बच्चे

लम्बा कारवाँ चल पड़ा है
अपने कन्धों पर अपनी झोपड़ियों के बाँस लादे
कौन हैं ये
भुखियाए आर्य

हिन्दुस्तान की कौनसी ज़मीन पर
रहने जा रहे हैं ये

नए लड़कों को कुत्ते प्यारे हैं
महलों के चेहरों का प्यार
वो कैसे पालें
इन भूखों ने पीछे छोड़ दी है
किसी ग़ैर की ज़मीन
लम्बा कारवाँ चल पड़ा है ।

'''पंजाबी से हिन्दी में अनुवाद : अमरीश हरदेनिया'''
</poem>
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