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|संग्रह=नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा / केशव तिवारी
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<poem>
जो लिखने से रह जाएगा
वो भी लिखा रहेगा कहीं न कहीं

कोई धीर नदी लिख देगी अपने कछार
की छाती पर

जो बोलने से रह जाएगा उसे कोई
किलहटी बोलेगी एलानिया किसी पेड़ की डाल से

हर हाल में दर्ज होगा मनुष्य का दर्द
और उल्लास हर हाल में

कितने नए रास्ते बन रहे हैं
कितनी पदचापें गूँज रही हैं

जो नहीं सुन रहे हैं एक दिन
उन्हें भी सुनना पड़ेगा

इस सृष्टि में एक भी आवाज़
व्यर्थ नहीं जाएगी
</poem>
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