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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
<poem>
शब्द मेरे पास
वापिस लौट आते हैं
और जानना चाहते हैं कि
मैंने उनमें क्या अर्थ भरे थे ।
अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ
मैं उन्हें समझाता हूँ
लेकिन उन्हें
समझ में नहीं आती मेरी बात ।
मैं उन्हें दूसरे शब्दों में
समझाता हूँ
लेकिन परिणाम व
ही ढाक के तीन पात ।
वो अविश्वासपूर्वक मुझे घूरते हैं
उन्हें लगता है कि मैं
उनका मज़ाक उड़ा रहा हूँ ।