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23 मार्च {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राहुल शिवाय
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<poem>
रहेगा कैसे भला अब उजास बस्ती में
उजाले हो गये हैं बदहवास बस्ती में
नज़ारे दिख हैं रहे कैसे अब सुशासन के
मिली है बेटी कोई बेलिबास बस्ती में
कई जवानों पे है वाह-वाह इजराइल
कोई गली है खड़ी बन हमास बस्ती में
हैं नफ़रतों के निरे बैल कितने बेकाबू
खुरों के ख़ौफ़ से सहमी है घास बस्ती में
तमाम मुँह पे है लफ़्फ़ाजियाँ, शिकायत भी
न दिख रहा है मगर कुछ प्रयास बस्ती में
हमारी बस्ती के बच्चे कई हैं अधिकारी
मगर है अब भी नदारद विकास बस्ती में
हमीं हैं जिसने उजाड़े हैं फूल बस्ती के
हमीं हैं चाह रहे अब सुवास बस्ती में
</poem>