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23 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राहुल शिवाय
|अनुवादक=
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
वो तो हम सब को ही आपस में लड़ा देता है
दरमियां रख के वो चिंगारी हवा देता है
पहले देता है मुझे ज़ख्म वो जी भर-भर कर
फिर मुझे अपना बताता है, दवा देता है
कौम की बातें सियासत ने उछालीं फिर से
ये वो मुद्दा है जो मसलों को भुला देता है
कैसे तारों से उन्हें बोलो मिला पाऊँगा
ये अँधेरा मेरे बच्चों को डरा देता है
तू जो पूछेगा कबूतर से तो क्या बोलेगा
क्या है आकाश का सच बाज बता देता है
रात आती है, ठहरती है, गुज़र जाती है
कौन ख़्वाबों को मेरे घर का पता देता है
मैंने सूरज को पिलाया है पसीना अपना
कौन ये है जो उजाले को मिटा देता है
</poem>