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{{KKRachna
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
 
}}
{{KKCatGhazal}}<poem>क्या जाने किसी की प्यास बुझाने किधर गयीं 
उस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गयीं
 
दीवाना पूछता है यह लहरों से बार बार
 कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गयीँगयीं
अब जिस तरफ से चाहे गुजर जाए कारवां
 
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गयीं
 
पैमाना टूटने का कोई गम नहीं मुझे
 गम है तो यह के चाँदनी रातें बिखर गयीं  
पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी यह हो रहे
 इक मुख्तसर सी रात में सदियाँ गुजर गयीं</poem>
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