{{KKCatGhazal}}
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ख़ारो-ख़स<ref>झाड़-झंखाड़</ref> तो उठें, रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया, काफ़िला तो चले
इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाऊँगा
आज ईंटों की हुरमत<ref>मर्यादा</ref> बचा तो चले
बेलचे लाओ, खोलो ज़मीं की तहें
मैं कहाँ दफ़्न हूँ, कुछ पता तो चले
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