Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
अभी तो आग हुस्न की , नई-नई है, जानेमन !
अभी तो ये जलाएगी, जवाँ मई है, जानेमन !
बरस रही है आग-सी , पिघल रहा हूँ मोम-सा
वो पुर-जलाल है अगरचे निर्दयी है, जानेमन !
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits