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जवाँ मई है, जानेमन ! / राकेश रंजन
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,
16 मई
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<poem>
अभी तो आग हुस्न की
,
नई-नई है, जानेमन !
अभी तो ये जलाएगी, जवाँ मई है, जानेमन !
बरस रही है आग-सी
,
पिघल रहा हूँ मोम-सा
वो पुर-जलाल है अगरचे निर्दयी है, जानेमन !
अनिल जनविजय
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