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उनके प्रवर्तक के मौत से !
तुम्हें क्या तुम्हें दिखाई देता है
कहर का वह भयानक रूप,
धोखेबाज़ी की वह तमाम नौटंकी,
अनगिनत बच्चों की बा हो मगर
सन्तान सुख से कोसों दूर हो तुम !महात्मा से के सूरज के तेज के नीचे
छोटा सा दिया बनकर
बुझती चली गईं दिन-ब-दिन तुम ।
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