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|रचनाकार=हरभजन सिंह
|अनुवादक=गगन गिल
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लड़की हैरान है
देह के जंगल में मिरग कस्तूरी का
शाहरग के पास-पास सपना बहुत दूरी का
ख़ुशबू के दरिया में बही जाती जान है
जिस्म की खिड़की में चन्द्रमा चमकते
दिन के समय सपने देखते हुए
अचानक चौंक उठती है दुनिया न जान ले
मन के अन्धेरे में जो रोशन जहान है
चलती चली जाती है
कपड़ों की ओट में चन्द्रमा छिपाती है
नज़रों के काँटों में बार-बार जैसे अटक जाती ओढ़नी
ख़ुशबू के भ्रमजाल मिरग हलकान
अपने ही होने से लड़की परेशान है
मुश्किल है हथेली पर चाँद रखकर चलना
बहुत दुश्वार है सदा कली का खिलना
बैठना अकेले और कुछ भी न सोचना
अपनी ख़ामोशी को बोलने से रोकना
छेद-छेद मटके में दरिया लेकर चली
उम्र नादान है !
'''पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल'''
</poem>
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