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अस्वीकरण
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उड़ चल हारिल / अज्ञेय
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,
5 जून
तू मिट्टी था, किन्तु आज
मिट्टी को तूने बाँध लिया है
तू था सृष्टि किन्तु
सृष्टा
स्रष्टा
का
गुर तूने पहचान लिया है!
वीरबाला
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